पत्र हिंदी के नाम [व्यंग्य ]
ऋषभ जी एक हिंदी के लेखक है जो हिंदी की वर्तमान अवस्था से बहुत पीड़ित और दुखी है अपना दुःख बांटने के लिए राष्ट्र भाषा हिंदी को पत्र लिखने का निर्णय लिया और लिखा भी लेखक लिखने के अलावा कर भी क्या सकता है उनका यह पत्र ----
आदरणीय राष्ट्रभाषा हिंदी ---शत -शत नमन
वादें और कसमें खाने में हम सबसे आगे है फिर भी स्वतंत्रता के बाद से हिंदी को गौरवशाली स्थान न दिला पाना हमारी कमजोर इच्छा शक्ति का परिणाम है लगता है प्रयास हुए पर सिर्फ रस्म अदायगी तक ही सीमित रह गए लगता है दिल और दिमाग से नहीं किया गया मात्र हिंदी प्रेमी होने का दिखावा किया जाता रहा है जो आज भी लगातार जारी है l माता -पिता भी तो मम्मी और डेड हो गए l तभी हिंदी के सब सपने डेड हो गए है साथ ही ड्रेस, व खान-पान भी विदेशी जैसे पिज्जा ,बर्गर ,हॉटडॉग ,और नूडल्स के क्रेजी हो गये l बदली भाषा ,बदले तेवर और रंग ढंग lहम उस देश के वासी है जहां तथाकथित अपने आप को आधुनिक समझने वाले बच्चो के हिंदी में बात करने पर अपने आप को अपमानित समझते है l देश की विडंबना है कि अंग्रेजी माध्यम के बच्चों को सौ तक के अंक भी हिंदी में नहीं पता होते है l
आपका अपना
ऋषभ
हिंदी भक्त और लेखक
ऋषभ जी एक हिंदी के लेखक है जो हिंदी की वर्तमान अवस्था से बहुत पीड़ित और दुखी है अपना दुःख बांटने के लिए राष्ट्र भाषा हिंदी को पत्र लिखने का निर्णय लिया और लिखा भी लेखक लिखने के अलावा कर भी क्या सकता है उनका यह पत्र ----
आदरणीय राष्ट्रभाषा हिंदी ---शत -शत नमन
आपकी सेहत तो दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है या फिर बिगाड़ने का प्रयास किया
जा रहा है आये दिन समाचार सुनकर,देखकर ,पढ़ कर आपकी गिरती सेहत से आपको
चाहने वाले दुखी और हताश है आजादी के लिए आपका भरपूर उपयोग किसी से छिपा
नहीं है पर उसके बाद पर जो सम्मान मिलना चाहिए व आजतक नहीं मिला और
मिलने के आसार भी नजर नही आरहे है,जिसका मुख्य कारण कथनी और करनी में भारी
अंतर है आप को प्यार करने वालों को बुरी नजरों से देखा जाना आम
बात है तथा उन्हें पिछड़ा औए अविकसित माना जाता है और आपके सम्मान के
खातिर डंडे खाने और पुलिस के अत्याचार पर भी किसी को रहम नहीं आता है
lहिंदी का होता चिर हरण तब हिंदी के भीष्म पितामह भी क्यों मौन हो जाते
है आज भी है कृष्ण की आवश्यकता l
वादें और कसमें खाने में हम सबसे आगे है फिर भी स्वतंत्रता के बाद से हिंदी को गौरवशाली स्थान न दिला पाना हमारी कमजोर इच्छा शक्ति का परिणाम है लगता है प्रयास हुए पर सिर्फ रस्म अदायगी तक ही सीमित रह गए लगता है दिल और दिमाग से नहीं किया गया मात्र हिंदी प्रेमी होने का दिखावा किया जाता रहा है जो आज भी लगातार जारी है l माता -पिता भी तो मम्मी और डेड हो गए l तभी हिंदी के सब सपने डेड हो गए है साथ ही ड्रेस, व खान-पान भी विदेशी जैसे पिज्जा ,बर्गर ,हॉटडॉग ,और नूडल्स के क्रेजी हो गये l बदली भाषा ,बदले तेवर और रंग ढंग lहम उस देश के वासी है जहां तथाकथित अपने आप को आधुनिक समझने वाले बच्चो के हिंदी में बात करने पर अपने आप को अपमानित समझते है l देश की विडंबना है कि अंग्रेजी माध्यम के बच्चों को सौ तक के अंक भी हिंदी में नहीं पता होते है l
आपके परम भक्त पद्म जी कह रहे थे
कि किसी की ये पंक्तियां " अपनों ने ही लूटा गैरों में कहां दम था
,कश्ती वहीं डूबी जहां पानी कम था " हिंदी की दुर्दशा के लिए सटीक है l
कोई सा भी क्षेत्र अछूता नहीं है हर जगह हिंदी को महत्व न के बराबर दिया
जाता है l केवल राष्ट्र भाषा का बोर्ड लगाने मात्र से ही सब कुछ सम्भव नहीं है दिल और
दिमाग से अपनाने से ही हिंदी का उत्थान होगा l हम क्यों आलसी और उदासीन रहते है
अपनी भाषा के प्रति? यह एक विचरणीय प्रश्न है जिसका उत्तर कभी भी आसानी से नहीं
मिल सकता उसमे भी आलस आ जायेगा या प्रतीक्षा करेंगे कि दूसरा कोई दे ही देगा l
मिल सकता उसमे भी आलस आ जायेगा या प्रतीक्षा करेंगे कि दूसरा कोई दे ही देगा l
एक पेशे से पत्रकार जो आपकी प्रगति के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले
ने अपनी व्यथा कुछ इस तरह बतायी कि हिंदी समाचार में "हेड लाइन "ब्रेकिंग न्यूज़ "
जैसे शब्दों का उपयोग करके हिंदी को गर्त में धकेलने में अपनी महत्व पूर्ण भूमिका का
निर्वाह कर रहे है जब तक भाषा के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे उसका अपमान करते रहेंगे l
हमें आशा हीं नहीं पूर्ण
विश्वास है कि अच्छे दिन के आने की बयार में आपके भी अच्छे दिन आयेंगे
आप चिंता न करें उम्मीद पर खरे ही उतरेंगे आपके चाहने वाले l
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