गुरुवार, 21 अगस्त 2014

आत्म चिंतन पर चिंतन [व्यंग्य ]

आत्म चिंतन पर चिंतन [व्यंग्य ]

                किसी भी विषय पर चिंतन करना समाज और देश के लिए बहुत जरूरी है पर देश में चिंतन का वातावरण ही नहीं  है सब के सब चिंता में ही लगे हुए है चिंता और चिता में एक बिंदी का ही अंतर है जो हर मनुष्य के लिए घातक है चिंता की बजाय चिंतन को बढ़ाने के प्रयास बहुत जरूरी है  l  एक न्यूज़ की कटिंग  लेकर भटकते हुए एक चिंतक आये और कहने लगे कि  थोड़े दिन में देश में चिंता को छोड़ कर चिंतन करने वाले बढ़ जायेंगे तो  मैंने  कौतूहलवश पूछ लिया कि ऐसा क्या चमत्कार होने वाला है
 तो वे कहने लगे सब को आत्म चिंतन केंद्र की सुविधा जो  मिलेगी ,
मैंने  फिर पूछा-यह क्या होता है ?
वे बोले आपको नहीं  मालूम कि शौचालय को हिंदी में "आत्म चिंतन केंद्र" कहते है
वे सबके लिए बनाये जायेंगे  जिससे चिंतन को नई गति मिलेगी , अभी जिनके पास है
वे अपने आप को  अच्छा और विकसित मानते है और जिनके पास नही है  उन्हें तुच्छ और पिछड़ा माना जाता है वे कहने लगे अधिकतर मनुष्य नाम के प्राणी अपने आप को ज्यादा  तनाव मुक्त वहीं  पाते होंगे  I  देश की हर समस्या का चिन्तन  उसी आत्म चिन्तन केंद्र  में करते होंगे शायद तभी विवादित बयानों की  इतनी बौछार होती है  बेचारा  वह क्या  चिंतन करेगा जिसके पास चिंतन केंद्र ही नही है उसके लिए तो यह अभिशाप है वैसे यह चिन्तन केंद्र  आजकल बहुतायत में पाए जाते हैं  पर सबका स्वरूप भिन्न -भिन्न  होता है जेसे वी . आई .पी .लोगों  .का पांच सितारा , .जन सामान्य का  साधारण .गरीबों  का सार्वजनिक ,और बाकी  बचे हुए  लोग  खुले  स्थान  की और रुख करने को मजबूर है l  खुले में चिंतन करने में  प्रकृति  के दृश्य विघ्न पैदा करते है ,और जीव जंतु का भय  सताता सो अलगl
  
         अत: चिंतन  का दायरा भी अलग अलग होता है  एक मंत्री ,नेता ,कवि ,लेखक ,पत्रकार ,व्यापारी ,अधिकारी और  सबका अपने  चिन्तन का विषय अपने  कार्यानुसार होताहै I  मैंने  कहा बेचारा गरीब आदमी ...तो अपनी रोजी -रोटी और बढती  महंगाई का चिन्तन कर दुखी होता है और चारा ही क्या है,आजादी की बाद से ही यह मुख्य मुद्दा रहा है सबने भुनाया और बाद में भुलाया  , फिर भी ढाक के तीन पात l  लगातर उनका चिंतन का बखान जारी था उनका कहना थी कि सरकारें   केवल चिंता  करती है और ठोस योजना का अभाव ही रहता है , इस समाचार के मुताबिक सबको यह सुविधा मिलेगी ऎसी  आशा अधिक  व विश्वास तो कम ही   है कि ऐसा  हो पायेगा बायचांस अगर हमारे देशवासियों के पास १०० प्रतिशत ऐसे केंद्र हो तो सब चिंतनशील हो जायेंगे  और सरकार के  हर कदम का  चिंतन  करेंगे ओर जिससे कर्णधारों  को सबसे ज्यादा  नुकसान होगा वे इस दर्द को समझते है  लेकिन  इसके प्रति चिंता को दर्शाना  उनका कर्तव्य है और  चिंता की रस्म  अदायगी कर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं  l
                  ऐसे केंद्र समाज और देश के विकास का आयना होते है मैंने  उन्हें कहा कि
आपने जो अपना चिंतन बताया है उससे लगता है कि  निंदक नियरे राखिये की बजाय चिंतक नियरे राखिये जिससे कुछ नया ज्ञान प्राप्त  होता रहें  l और आत्म चिंतन पर चिंतन की प्रेरणा का प्रदुर्भाव होता रहें  l
                                   
 
                     
संजय जोशी "सजग " [ व्यंग्यकार ]

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