ऐ - होमवर्क तूने तो बचपन ही छीन डाला
संजय जोशी "सजग " [ व्यंग्यकार ]
तकरीबन पढ़ने वाला हर बच्चा ,चुन्नू -मुन्नू हो या गिन्नी -बिन्नी होमवर्क नाम की बीमारी से ग्रसित है
बच्चों की डिक्शनरी में होमवर्क शायद सबसे डरावना शब्द है। बेताल की तरह
यह भी इनका पीछा ही नहीं छोडता घर में प्रवेश करते ही आधुनिक मम्मियों
द्वारा यक्ष -प्रश्न कितना होमवर्क दिया ? बेचारा बच्चा हताश होकर बताता है
कि इतना -इतना दिया है उसके बाद उसकी मम्मी की सुपर प्लानिंग चालू जाती है में एक घंटे सो रही हूँ तुम सब होमवर्क
पूरा कर लेना नही तो खेलने नही जाने दूंगी बेचारा बच्चा खेलने जाने के मोह
में जी तोड़ मेहनत कर होमवर्क पूरा करता है खेलने जाने के लिये मानसिक
रूप से अपने आप को तैयार करता है और अगला आदेश फिर प्रसारित कर दिया
जाता है जल्दी आना....ट्यूशन जाना है इससे बच्चों की क्रिएटिविटी,
सोचने-समझने की क्षमता और कल्पनाशक्ति तेजी से
घट रही है। वे समझने के बजाय रटने का तरीका अपना रहे हैं।यूरोपीय देश तो
होमवर्क से इतना ऊब चुके हैं कि उन्होंने इसे पूरी तरह खत्म करने की दिशा
में प्रयास शुरू कर दिया है l हमारे देश में और भी कई समस्या है इसके बारे
में कौन सोचे ? बच्चा वोट देता है क्या ?हम तो उसकी ही सोचते हैं जो वोट
देता है तुम बच्चो कौन से खेत की मूली हो ?
तनाव में खेलने का प्रयास करता है,अगला टारगेट जो उसे पूरा करना है
अब वह मम्मी की गिरप्त से छूट कर पापा के कटघरे में आ जाता है फिर रिविजन का
प्रोग्राम चालू हो जाता है …क्या करे हैरान परेशान है इस होमवर्क ने तो पूरा बचपन ही
धो डाला। समर वेकेशन हो या कोई सा वेकेशन होमवर्क का खतरा हमेशा मंडराता रहता है यह होमवर्क नाम की बीमारी ने बच्चो को क्या माँ और बाप की आजादी के साथ भी कुठराघात कर रखा है l कोर्स से ज्यादा होमवर्क l चुन्नू -मुन्नू हो या गिन्नी -बिन्नी का कहना है कि होमवर्क नहीं करो तो पनिश्मेंट मिलता है और बच्चों और टीचर के सामने
धो डाला। समर वेकेशन हो या कोई सा वेकेशन होमवर्क का खतरा हमेशा मंडराता रहता है यह होमवर्क नाम की बीमारी ने बच्चो को क्या माँ और बाप की आजादी के साथ भी कुठराघात कर रखा है l कोर्स से ज्यादा होमवर्क l चुन्नू -मुन्नू हो या गिन्नी -बिन्नी का कहना है कि होमवर्क नहीं करो तो पनिश्मेंट मिलता है और बच्चों और टीचर के सामने
इमेज खराब का डर सताता रहता है ,हमारा तो बचपन ही छीन डाला सही
है बच्चो की व्यथा से मैंने भी सहमति जताई की सुनहरा बचपन---दुःख भरा हो
रहा है l
एक पीड़ित आधुनिक माँ ने अपने भाव प्रकट करते हुए कहा कि
बच्चों पर मानसिक दबाव कम करने के लिए हवाई किले तो बहुत बनाये जाते है
इसके लिये न जाने कितने सेमिनार और वर्कशाप के आयोजन होते है पर सिर्फ
औपचारिक होकर रह जाते है तनाव तो बच्चों के हिस्से में ही रहता है ,घर
वाले सोचते है कि ज्यादा देर तक स्कूल में रहे ताकि घर में शांति रहे
और स्कूल वाले सोचते है पढ़ाई का काम स्कूल में कम से कम हो और बच्चे के
पेरेंट्स ही सब करवा दे lआज बच्चों का होमवर्क व प्रोजेक्ट वर्क पेरेंट्स
के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है l इसीलिये तो आजकल एडिमिशन के
समय पेरेंट्स की योग्यता ,और जेब कितनी भारी है यहीं देखा जाता है l
निजी स्कूल के टीचर जी का कहना है कि कोर्स तो आराम से
पूरा हो जाता है होमवर्क तो बच्चो में कैलिबर बढ़ाने के लिए देते है और
सरकारी स्कूल के मास्टर जी का कहना है हमारे यहां तो न स्कूल में कुछ
करवाते है और न ही होमवर्क देने का समय है हमारे पास दूसरे सरकारी काम
भरपूर है सब छात्र तो ईश्वर पर आश्रित है l
कई बच्चे तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने
के पहले ही डिप्रेशन के शिकार हो जाते है l ये होमवर्क ने बच्चो का सुख
चैन सब छीन रखा है और बच्चे कोसते होंगे कि
है होमवर्क
का चलन चलने वाले मैकाले ,तूने बच्चों पर कितने सितम ढहाये,तुझे क्या मिला
बच्चों का बचपन छीनने वाले चेहरे की हंसी को मत समझ हकीकत-
ऐ होम वर्क तुझसे कितने परेशां है हम सब -----l
yashoda agrawal..ji aapka shukriya
जवाब देंहटाएंएक ज़माना था जब खेल-खेल में गाते हँसते पहाड़े भी याद किये जाते थे और अब स्कूल के बाद भी होम वर्क में आँखे गड़ाये सारा समय बीतता है .
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रतिभा सक्सेना..ji thanks
जवाब देंहटाएंSmita Singh..ji shukriya
जवाब देंहटाएंसिर्फ बच्चों का चैन नहीं माँ बाप का भी ... यह तो रात ९ बजे जब बच्चे प्रोजेक्ट के लिए बोलते हैं तो बाजार भटकना पड़ता है और इंटरनेट पर बैठ सर खपाना पड़ता है ..
जवाब देंहटाएं..बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति ...
कविता रावत..ji dhanyvad
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