राजनीति के साइड इफेक्ट [व्यंग्य ]
भारतीय राजनीति चुनावी महाभारत अपने पूरे शबाब पर है सभी राजनी तिक दल अपना अपना परचम लहराने के तानेबाने में व्यस्त है ,गुण ,अवगुण ,मान ,अपमान ,मतभेद ,मनभेद ,छोटा बड़ा सब कुछ भूलकर गठबंधन में जोड़ने और जुड़ने का क्रम जोरों पर है और कुछ क्यू में है ,जैसे -जैसे चुनाव नजदीक आयेंगें वैसे -वैसे और नई मिसालें और कई सारे रंग देखने को मिलेंगे और साथ में राजनीति के साइड इफेक्ट के कई अनूठे नजारे देखने को मिलेंगे क्योंकि इतनी उथल -पुथल जो हो रही है l
इस इफेक्ट को एक सीनियर सीटिजन ने यूँ
व्यक्त किया कि राजनैतिक घबराहट की हड़बड़ाहट में जो बड़बड़ाहट हो रही है
उससे हमारे लोकतंत्र के नैतिक मूल्यों के पतन का ग्राफ़ लगातार गिरता जा
रहा है स्वार्थ और कुर्सी के मोह ने धृतराष्ट्र सा बना दिया है नैतिकता
का चीर हरण जारी है भीष्म पितामह हर पार्टी में है सब मौन है कोई भी इस
नाजुक समय में कोई रिस्क लेना नहीं चाहता है जो हो रहा है होने दो बाद
में देखेंगे इस लिए दुर्योधनों के हौसले बुलंद है ,शब्द के बाण
अनियंत्रित हो गये हैं और एक दूसरे को छलनी करने में लगे हुए है ,कुछ
तो जिस डाल पर बैठे है उसे ही काट रहे है कुछ जड़ काटकर पानी दे रहे है और
एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं सब का एक ही
उद्देश्य है चुनाव की नैया पार करना येन केन प्रकारेण सब यही सोच
रहे हैं कि हम किसी से कम नही l उधो कि पगड़ी माधो का सर कब तक चलेगा l
झूठे आश्वासन ,मुफ्त में बांटने कि होड़
में धड़ाधड़ शिलान्यास ,घोषणाओं की भरमार हो रही है ,आचार संहिता के भय से
l सभी दल बड़ी -बड़ी रैलियां कर रहे हैं नाम भी ऐसे कि जैसे आजादी कि जंग
हो रही हो रोड शो और न जाने क्या क्या इन सब को झेलना तो बेचारी आम
जनता को ही पड़ता है जो इन सबके साइड इफेक्ट से त्रस्त है l
न्यूज़ चैनलों ने राजनीति की गहमागहमी को कई
गुना बड़ा दिया है रोज रोज के ओपनियन पोल ,रैलियों और आम सभाओं का सीधा
प्रसारण और उसके बाद २४ घवो ही समाचार ,छोटी -छोटी बात पर घंटो की बहस ने यह सोचने को विवश कर दिया है कि ये न्यूज़ चैनल्स का अधिकतम समय केवल राजनीति मे ही बर्बाद हो रहा है औरइस साइड इफेक्ट से ग्रसित होकर रेडियो और प्रिंट मीडिया की और आकर्षण बड़ रहा है प्रिंट मीडिया ने अपने उसूलों को बनाये रखा है l
अच्छा भला आदमी भी राजनीति के दलदल में फंसकर कई साइड इफेक्ट का शिकार हो जाता है स्वार्थ के वशीभूत भ्रष्टाचारी ,दलबदलू ,बागी,घोटाला किंग ,पाखंडी ,चाटुकार
,चमचा प्रेमी ,चंदा उगाना ये सब अपने आप हावी हो जाते है और मुक्त होने
कि चाह से भी मुक्त नही हो पाता , जुलूस ,धरना ,रैली और पुतला दहन उसकी
कार्य शैली बन जाती है और यह सब उसकी जागरूकता की पहचान बन जाते है l
सीनियर सीटिजन की बात से सहमत होकर मैंने उनसे कहा कि क्या किया जाये
इन साइड इफेक्ट का कोई इलाज है वे बोले मुझे तो यह लाइलाज बीमारी लगती है
ज्यों -ज्यों इलाज किया त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता गया अब हरि कि इच्छा
पर निर्भर है कि इन सब राजनीतिक साइड इफेक्ट के चलते देश किधर जायगा ? अब
तो राजनीति शब्द सुनकर मायूसी छा जाती है ऐसी कैसी राजनीति कि जनता ही
हमेशा पिसती रहे अंत में कहने लगे कि ----कोई नृप होय हमें का हानि ....
यह सब सोच कर ही दिमाग कि बत्ती गुल हो जाती है।
संजय जोशी " सजग "
अब चारों और यही सब दिखाई सुनाई पडेगा ,चुनाव तक....
जवाब देंहटाएंAditi Poonam..ji aabhar
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