चिन्ता करने वाले चिंतक हमारे देश में बहुतायत से पाये जाते है जो देश की राजनीति के ब्रह्मांड में घटने वाली घटनाओं का बारिकी से चिन्तन करते है और दुखी होते रहते है इसके अलावा बेचारे कर भी क्या सकते है चिंता और चिन्तन उनका मौलिक स्वभाव बन गया है ऐसे ही एक चिंतक श्री चिंतामणी ने देश में घटित अपनी ढपली अपना राग की नौटंकी का बखान करते हुए अपनी चिन्तनशीलता प्रकट करते हुए कहा कि ...हमारे देश में फिल्म, दूरदर्शन व संचार क्रांति ने जहाँ नाटक,नौटंकी को विलुप्त सा कर दिया,जो हमारी प्राचीन परम्परा की विरासत है हम सब के रग -रग में बसी है हम कैसे भूल सकते है इसे सहेजने का काम हमारे नेता ,.अभिनेता ,बाबा और तथाकथित समाज सेवी करते है और कोई- न कोई नौटंकी को हर रोज बखूबी अंजाम देते है और अपनी ढपली अपना राग अलापते है और हमारे दृश्य मिडिया इसमें चार चाँद और नमक मिर्च लगाकर चटकारे लेने में माहिर है क्या करें देश में अच्छी चीजों की कमी जो है ,चिंतामणी जी बड़े व्याकुल हो रहे थे I
देश में कुछ प्रमुख दल जो गिनती के है और भी कई छोटे -छोटे दल है जिनकी अपनी -अपनी नौटंकी रोज चलती है और गठबंधन के नाम पर ये छोटे दल जैसे अधजल गगरी छलकत जाय की तर्ज पर अपना रौब झाड़ने और नौटंकी करने को आतुर रहते है ,बड़े दल सब नौटंकी सहने को मजबूर रहते है बहुमत का आकड़ा जो पार करना रहता है
चिंता मणी जी ने अपनी चिंता को जारी रखते हुए कहा कि राजनीतिक दलों की अपनी ढपली अपना राग के कारण देशहित और जनहित के कई मुद्दे यूँहीं धरे के धरे रह जाते है और जनता के अरमानों पर पानी फिरता रहता है हर दल जनसेवा की नौटंकी में लगे हुए है और अपने को सबसे बड़ा हितैषी बताने के असफल प्रयास में लगे रहते है जैसे उनके जैसा इस धरा पर दूजा कोई नहीं है कुछ तथाकथित , बाबाओं ने धर्म और सामाजिक परिवेश को तार -तार करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है देश की संस्कृति को जितना नुकसान पश्चिम से नही हुआ उससे कहीं अधिक नुकसान तथाकथित बाबाओं के ढोंगीकरण की नौटंकी से हुआ जिसने सामाजिक व धार्मिक ताने बाने को आहत किया I
नेताओ के बयानबजी की नौटंकी सार्थक हो या निरर्थक l उस से उनको क्या लेना देना ,उलुल -जुलूल बयान देकर अपनी पहचान कायम करनी है और बाद में खेद प्रकट करने के हथियार का सहारा लेकर .थूक कर चाटने में भी शर्म के बजाय गर्व की अनुभूति होती है यह पब्लिक है सब जानती है I
हाथ जोड़ कर अब सत्ता सब करते स्वीकार नही यहाँ ,
मौन भाव से सब स्वीकारे , उसका आस्तित्व नही यहांI
अभी देश में जनता को ,पानी ,बिजली ,खाने का सामान ,कम से कम में बाँटने की नौटंकी की होड़ सी मची है देश में फ्री में बाँटने की प्रथा का चलन जोरों पर है आखिर कब तक यह नौटंकी चलेगी हर कोई जानता है हर चीज का अंत होता है पर ऐसी योजनाओं से तो देश में मेहनत करने वालों का सरासर अवमूल्यन होता है सब राज्यों में जोर -शोर से अपनी ढपली अपना राग चल रहा है I
उनकी व्यथा निरंतर चल रही थी , कभी -कभी लगता है कि हमारा देश नौ -टंकी प्रधान देश है विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में जहाँ विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है विशालता से परिपूर्ण इस देश में जब अपनी ढपली अपना राग बेसुरा हो जाता है तब देश का बुद्धिजीवी घोर मानसिक दबाव महसूस करता है वहीं यह सोचने को मजबूर होजाता है कि देश केवल नौटंकी के भरोसे ही चलता रहेगा वह ईश्वर से प्रार्थना करता होगा कि नौटंकी करने वालों को सदबुद्धि दें व इस नासूर से ....मुक्ति दें .मैंने कहा कि आप और हम क्या करें कि देश के राजनीति के कुएँ में भांग जो मिली हुई है वर्तमान में दिखावे की नौटंकी कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है जैसे हाथी के दांत खाने के कुछ ओर दिखाने के कुछ ओर होते है सबकी कथनी और करनी में बहुत लम्बा फासला है जो कम होने के बजाय दिन दूनी रात चौगुनी तर्ज पर बढ़ रहा है -
संजय जोशी 'सजग '
७८ गुलमोहर कालोनी रतलाम [मप्र]
09300115151
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