सोमवार, 31 मार्च 2014

अप्रैल फूल ==[व्यंग्य]

                               == अप्रैल फूल ==[व्यंग्य]

मेरे मित्र जो पेशे से सरकारी स्कूल में हेड मास्टर के पद पर पदासीन है ,चर्चा ही चर्चा में अप्रैल फूल यानि मूर्ख दिवस 1 अप्रेल को ही क्यों मनाया जाता है इस विषय ने तगड़ी बहस को जन्म दे दिया और  बहस चल पड़ी , मै सहजता से पूछ बैठा की मूर्ख की क्या परिभाषा है? आपके दैनिक जीवन में इस शब्द का महत्व पूर्ण स्थान है ,कहते ही मास्टर जी बगले झांकने लगे और कहने लगे कि  कभी गम्भीरता  से इस पर  चिन्तन नहीं  किया, मैंने कहा यूँ  भी  क्या चिन्तन का आपके पेशे से दूर-दूर तक वास्ता नहीं है  या वक्त ही नही मिलता है सरकार के अधिकारी  है जो कहे वो ही तो करना है आपको I मास्टर जी को जब  पता नहीं  तो बाकि का क्या हाल होगा ,बेचारे बच्चे क्या जाने ,रोज सुनते है सुनना उनकी नियति है I

आपना खुद का सामान्य ज्ञान भी कहाँ ज्यादा  है सोचा थोडा बड़ा लिया जाय .,मेरे पास उपलब्ध पुस्तकों  को उल्टा-पलटा तो विदुर नीति  से सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त हुआ ,आप तो जानते ही  है महाभारत काल का  हश्र।फिर भी मुझे तो मास्टर जी को अपना किताबी ज्ञान बाँटना  ही था सो उन्हें विदुर नीति के अनुसार मूर्ख किसे कहते है  बताने लगा मास्टर जी ने  जिज्ञासा भरी नजरों  से मुझे घूरा  ..मैंने  उन्हें कहा की विदुर नीति के अनुसार ...ऐसे लोगों  को मूर्ख कहते है - जो शास्त्र शून्य होकर भी अति घमंडी है ,बिना कर्म के धन प्राप्त करता हो ,अपने कार्य को छोडकर शत्रु के पीछे दौड़ता हो ,मित्र के साथ कपट व्यवहार ,मित्र से द्वेष, विश्वास घात ,झूठ बोलने वाला ,गुरु ,माता ,पिता और महिला का अपमान करता हो,आलसी हो ,बिना किसी काम का  हो  वह मूर्ख की श्रेणी में आते है I स्वयं दूषित आचरण करता हो और दूसरों  के दोष की निंदा करता हो वह महामूर्ख कहलाता है I मास्टर जी बोले इस प्रकार  धरा पर कोई भी इससे अछूता  नही है, ,हम बेचारे छात्रों को अपमानित करते रहते है पढ़ा लिखा मूर्ख अनपढ़ मूर्ख से अधिक मूर्ख होता है , हमारा देश मूर्खो और महामूर्खो से भरा पड़ा है I

हमारे देश में एक जुमला प्रसिद्ध है की मूर्ख मकान बनाते है और बुद्धिमान उसमे रहते है एक बार मकान किराए पर लेकर जिन्दगी भर मकान मालिक को मूर्ख बनाते  रहते है  और कोर्ट तक चप्पले घिसवाते है Iचुनाव में वोट  के लिए चापलूसी कर फिर जनता को पांच साल तक  मूर्ख बनाते है और हम सहते रहते है , मंदी की मार का खौफ़  बताकर और  कीमतें  बड़ाकर  सरकार जनता को आये दिन मूर्ख बनाती है ईमानदार टैक्स चुकाता  है और मूर्ख  न चुका कर उसका आनन्द लेते  है I मूर्खता की भांग देश में घुली पड़ी है हर एक दूसरे को मूर्ख बनाता है ओर समझता भी है I

मास्टर जी  को हताश होते देख कर उन्हें बताया कि  देश में कुछ बुद्धि जीवी है जो  अपने आप को  कालिदास के वशंज मानते है वे फिर अपने तेवर में आ गये ,और देश के नेताओं  और सरकारी तन्त्र के सरकारी अफसरों को कोसने लगे इन्हीं  सबने मिलकर देश का बंटाधार   कर दिया ,मूर्खता पर नोबल पुरुस्कार यदि होता हो तो देश के किसी  नामी गिरामी मूर्ख   को ही मिलता ,उनका आवेग देख कर उन्हें रोकने के लिए "थ्री इडियट "फिल्म का उदाहरण देकर सामान्य करने की   कोशिश करने का  प्रयास किया कि  इस फिल्म ने यही धारणा को उजागर किया की मूर्ख महान होते है वे ईश्वर की सर्वोतम कृति है देश में यह किस्म बड़ी तादाद में  पाई जाती है

मूर्खता करना हमारा  जन्म सिद्ध अधिकार है जब तक सूरज -चाँद रहेंगे मूर्ख ओर मूर्खता जिन्दा रहेगी ,मास्टर जी गर्वित होकर बोले हम तो बचपन से ही ऐसी  प्रतिभा को पहचान लेते है और मूर्ख कह देते है बनना तो निश्चित है हम  भावी पीड़ी  के  जनक  जो ठहरे इनकी नींव  स्कूल ,कॉलेज  ..से ही शुरू होती है हम जैसे  बुद्धि जीवी इसके दाता है I मैने कहा धन्य है मास्टर जी मुझे आज पता चला है कि  आप मूर्ख प्रदाता है इस देश को I मुझे मूर्खता से इतनी तकलीफ नहीं  होती ,जितनी इसे ही अपना गुण समझने वालों  से ,केवल मृत व्यक्ति और मूर्ख  ही अपनी राय नहीं  बदलतेIमूर्खता  के अलावा कुछ  पाप नही होता है Iमूर्खता सब कर लेगी पर बुद्धि का आदर कभी नहीं  करेगी ,अत: मास्टर जी सोचो हम कहाँ है ?

मूर्ख और मूर्खता को  सहेजने के लिए देश में कई मंचो ने  अनेक कार्यक्रम लांच कर रखे है जो मूर्ख और मूर्खता को स्वीकार करने में नही हिचकते और पूरी मुस्तैदी  से वर्ष भर अंजाम देकर एक दिन उसको अभिव्यक्त करते नही थकते जेसे मूर्ख ,महामूर्ख .टेपा खांपा,कबाड़ा गुलाट , आदि सम्मेलन है  इनका जन्म भी  इसीलिए  हुआ  जो अपने आप को मूर्ख मान कर उपहास करने  का उपक्रम करते है .मूर्खता का अंत सम्भव नही लगता है और हम एक अप्रैल  को अप्रेल फूल यूँ   ही मनाते रहेंगे I जो मूर्ख की श्रेणी में आते हो और अपने दिल से माने ..उन सभी को..अप्रैल  फूल की बधाई .....I


 
 

संजय जोशी 'सजग '

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