टच से टच में रहना [व्यंग्य ]
टच स्क्रीन मोबाइल का अविष्कार क्या हुआ ,अब समाजिक ताना बाना टच पर निर्भर हो गया है या हम यह कहे कि मेलजोल की संस्कृति बनाम टच संस्कृति हो गई है हालांकि कुछ गांव इससे आंशिक रूप से अछूते है l दुनिया मुठ्ठी में की जगह अब टच स्क्रीन पर सिमट गयी lसामाजिक संबंध इसी पर निभाए जाने लगे है l जन्म ,.मरण और अन्य किसी भी प्रकार की सूचना पोस्ट करो और भार मुक्त हो जाओ l टच से टच में रहने के आदि हो गए हैं l बधाई संदेश और श्रद्धांजलि का कार्यक्रम यहीं निपट जाते है l दोनों और से सूचना का आदान प्रदान टच से हो जाता है l आजकल तो मोबाइल ही सब कुछ है जो हमारे साथ सदैव बने रहते हैं मोबाइल महाराज कब संजय की तरह उवाचने (बोलने) लगे कोई नहीं बता सकता। हमारे महाकवियो ने ईश्वर के इतने रूपो का वर्णन नहीं किया होगा तथा उनकी लीलाओं का उदगान नहीं किया होगा, उनसे ज्यादा तो आज के बहुरूपिये मोबाइल को नये-नये रंगो, डिजाइनो में पेश किया है।नारद जी के जमाने में यह सुविधा होती तो उन्हें सब लोको में भटकने से मुक्ति मिलती l
इससे पहले हम सब ईश्वर का ध्यान कर सोते थे और उठने के बाद भी ईश्वर का ध्यान करते थे अब सोने से पहले टच के दर्शन करते है और उठते ही पहला काम टच का दर्शन करना हमारी नियती हो गई है l कब कोनसा मैसेज टपक जाये यही चिंता सताये रहती है और इसी गुन्तारे में थोड़ी -थोड़ी देर में मैसेज देखने की आदत पढ़ गई और हम धन्य हो गये कि हमारा चित हमेशा चैतन्य रहने लगा l कहीं सक्रिय हो या न हो पर टच स्क्रीन पर कई गुना सक्रिय रहने लगे है l वरिष्ठ नागरिक पूर्णतया अपनी आचार संहिता का पालन करते है बाकी की तो वही जाने l हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को छीन लिया है। यानि के जीवन का क्वालिटी टाइम या प्राइम टाइम जिसे हमें अपने परिवार, बच्चों व समाज में बिताना चाहिए वह मोबाइल पर व्यर्थ किया जाता है। नेट डाटा फ्री बांटकर कम्पनियाँ और ज्यादा असामाजिकता का विस्तार कर रही है इसी में उलझे रहो l ऐंटी रोमियो स्क्वाड जब से सक्रिय हुआ ने टच से टच में रहने का चलन और फल फूल रहा होगा l
टच का स्क्रीन ज्ञान के आदान प्रदान याने की इधर का उधर चस्पा करने की होड़ लगी रहती है कुछ तो बिना देखे ही फारवर्ड कर देते है lग्रुप में ऐसी फजीहत आये दिन होती रहती है माफ़ी मांग मांग कर अपने को मिस्टर क्लीन बताने की मशक्त करते रहे है क्या करे टच से टच में रहने की आदत जो पड गई l दिल से नहीं तकनीकि रूप से जुड़ाव हुआ है l झूठ के प्रतिशत में बढ़ोतरी इसी से हुई है lटच से टच में रहना एक कर्मशील व्यक्तित्व की निशानी बन चुका है ,अपनी -अपनी हैसियत के आधार पर कोई एक तो कोई एक से अधिक से यह सामाजिकता निभा रहा है तथाअपना स्टेटस मेंटेन करहा है क्योकि यह आजकल स्टेटस सिम्बॉल हो गया है l दिल है कि मानता ही नहीं और दिल करता है टच से टच में रहूं l
सत्यावलोकन
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