घोषणा पत्र का झुनझुना [व्यंग्य ]
आम तौर पर छोटे बच्चे को बहलाने फुसलाने के लिए झुनझुने का प्रयोग
किया जाता है उसकी आवाज और आकृति बच्चे के मन और मष्तिष्क पर इस कदर
प्रभावशाली होती है या यूँ कहे कि वह उससे सम्मोहित हो जाता है और वह अपनी पुरानी
अवस्था से बाहर निकल कर सबकुछ भूलकर खुश होकर आशावान हो जाता है कि सब अच्छा होगा l चुनाव में घोषणा पत्र झुनझुने कि भूमिका में होता है ,हर पार्टी इस झुनझुने के सहारे नैया पार करने कि अभिलाषा रखता है यह केवल आश्वासन का पुलिंदा मात्र होता है जेसे बच्चो के लिए अलग -अलग डिजाइन और अलग -अलग आवाज वाले झुनझुने होते है उसी की तर्ज पर घोषणा पत्र भी स्वार्थ के मुताबिक और लोक लुभावन होते है जनता इस झुनझुने से अपने सब दुःख दर्द भूलकर नई उम्मीद कि किरण खोजती है शॉर्ट टर्म मेमोरी होने कारण फिर माया जाल में फंसकर वही गलती कर बैठती है हमेशा की तरह , सिर्फ लेबल बदलने से कुछ नही होता है l
आम तौर पर छोटे बच्चे को बहलाने फुसलाने के लिए झुनझुने का प्रयोग
किया जाता है उसकी आवाज और आकृति बच्चे के मन और मष्तिष्क पर इस कदर
प्रभावशाली होती है या यूँ कहे कि वह उससे सम्मोहित हो जाता है और वह अपनी पुरानी
अवस्था से बाहर निकल कर सबकुछ भूलकर खुश होकर आशावान हो जाता है कि सब अच्छा होगा l चुनाव में घोषणा पत्र झुनझुने कि भूमिका में होता है ,हर पार्टी इस झुनझुने के सहारे नैया पार करने कि अभिलाषा रखता है यह केवल आश्वासन का पुलिंदा मात्र होता है जेसे बच्चो के लिए अलग -अलग डिजाइन और अलग -अलग आवाज वाले झुनझुने होते है उसी की तर्ज पर घोषणा पत्र भी स्वार्थ के मुताबिक और लोक लुभावन होते है जनता इस झुनझुने से अपने सब दुःख दर्द भूलकर नई उम्मीद कि किरण खोजती है शॉर्ट टर्म मेमोरी होने कारण फिर माया जाल में फंसकर वही गलती कर बैठती है हमेशा की तरह , सिर्फ लेबल बदलने से कुछ नही होता है l
हर चुनाव में भांति -भांति के झुनझुने बजाने का काम किया जाता है
आजकल फ्री याने मुफ्त में बांटने कि होड़ लगी है हर कोई इस ब्रम्हास्त्र का उपयोग करने
को उतारू है स्वार्थ कि भावना कूट -कूट कर जो भरी है बस
उन्हें तो केवल वोट चाहिए और येन केन प्रकारेण सत्ता चहिये इसलिए घोषणा
पत्र का झुनझुना बजाते है और अपने आप को गर्वित महसूस करते है तब यह भूल
जाते है कि देश में खाद्यान्न का उत्पादन करने वाला किसान आत्महत्या
क्यों करता है उत्पादन और वितरण के बीच में कितनी बड़ी खाई है यह हमारे
देश की राजनीति कि विडंबना है कि बड़े -बड़े दावे और वादों के बीच उसकी
चीख सुनी नहीं जाती है या उससे कोई सारोकार ही नहीं है l इस कला में वे
इतने निपुण हो गये कि हम सब को बौना ही समझते है l
अभी तो घोषणा पत्र का झुनझुना बजाकर अपना
उल्लू सीधा कर लेते है और हम सबको अगले चुनाव तक उल्लू बनकर रहना पड़ता
है यह तो उनका चुनाव जीतने का हथकंडा मात्र है जीतने के बाद में तो आँख
दिखाकर कदम -कदम
पर अत्याचार ,शोषण ,भ्रष्टाचार ,वादा खिलाफ़ी के ढोल बजाने लगेगे और पास के ढोल
हमारे
कान पर कहर बरसाएंगे l बुद्धिजीवियों और श्रमजीवियों का जुमला है कि
कोई भी जीते कोईभी हारे हमें क्या फायदा सही भी है इतने सालों का
तजुर्बा सबको हो चुका है l कितनी सटीक कहावत है कि "कोई नृप होय हमें का
हानि "l
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