मंगलवार, 18 नवंबर 2014

रेडियो के फिर से अच्छे दिन आने वाले हैं [व्यंग्य ]


            रेडियो के  फिर से  अच्छे दिन आने वाले हैं
[व्यंग्य ]

                सीनियर सिटीजन  का एक समूह नियमित रूप से मॉर्निग वॉक  करने आता है और वॉक  करने के बाद उनकी समूह चर्चा होती  है , न जाने क्यों मुझे  भी बुलाया और एक साथ प्रश्नों  की बौछार कर दी कि  आप  ही बताइये की रेडियो के फिर दिन अच्छे आने वाले हैं  की नहीं  ?मैंने कहा मैं  छोटे मुहँ बड़ी बात कैसे कहूँ और मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा क्योंकि  पीढ़ी के अंतर के कारण विचार भिन्नता होना स्वाभाविक था l मैंने उनसे कहा की आप लोग ही बताइये -अब तर्क वितर्क की बौछार होने लगी ---कुल  पांच , सभी सक्रिय  थे  और सब अपने -जोश खरोश के   साथ अपने तेवर दिखाने  के लिए  हौंसले बुलंद थे उनकी विचारशीलता में  तजुर्बा  इठला  रहा था l देख कर लगा कि  आज  युवा विचारों  का कितना खोखला है l उनकी चर्चा की हाईलाइट्स की झलक देखिये ---

प्रथम -    न्यूज़ से ज्यादा विज्ञापन  झेलो ,और विज्ञापन भी ऐसे -ऐसे कि  शर्म आने लगती है परिवार और बच्चों  के   साथ देखने में शर्म और झिझक होने लगी है l इस टेंशन  के साथ  ही रिमोट लेकर न्यूज़ चैनल बदलने  के लिए कितनी मशक्क़त करनी पड़ती है और उसके बाद  कान  आँख और दिमाग खंपाओ और नतीजा सिरदर्द l इससे अच्छा तो रेडियो ..l

द्वितीय - अरे भाई सुनने और देखने में चार अंगुल का अंतर रहता है देखने और सुनने
दोनों का ही  आनंद लेने में बुराई क्या है ? हाँ, पर आपकी बात में दम है रेडियो के बारे
में सोचना ही पड़ेगा ,टीवी चैनलों  ने तो हद ही पार कर दी है और सबको बेचैन कर रखा है l
प्रथम पुनः  बीच में कूद पड़े जैसे संसद में होता है उन्हें रोकते हुए  कहा कि  आप विचार रख चुके है अब सबसे अंत में फिर जो कहना हो कह  सकते हो l
तृतीय - अपन ने तो इसी मगज मारी के  कारण रेडियो पर समाचार  सुनना शुरू कर दिया बढ़िया आनंद आने लगा और फिर जवानी में लौट गए कहीं  भी बैठो और कहीं भी   सुनो न कोई नाराज और अपन  तो अपनी मस्ती  में मस्त l  वापस रेडियो का जमाना तो आएगा  ही  टीवी ने तो टोटल बोर कर दिया l पूजा ,अर्चना ,प्रवचन  ,मिमयाना ,गिगयाना और पुनरावृत्ति के ओव्हर डोज से खतरनाक साइड इफेक्ट होने लगे है l
चतुर्थ - आजकल की पीढ़ी खतरनाक  है गंदे विज्ञापन के बारे में सवाल जवाब ऐसे करती है कि  आप की बोलती बंद हो जाये l  झूठ बोल -बोल  कर  पिंड छुड़ाना पड़ता है अब बुढ़ापे में ये ही  बचा है क्या  ? इसी चक्कर में फेस बुक के आदी  हो गये ,इससे समय मिलें  तो रेडियो सुनना ही अच्छा, नहीं  तो fb ही अच्छी l
पंचम - आप सब की बातों  से मैं  सहमत हूँ चैनल वाले कमाई के चक्कर में क्या -क्या
परोस रहे है भगवान ही मालिक है और ऐसा लगता है की देश को ये ही चला रहे है सीट के बँटवारे से लेकर मंत्री मंडल के गठन तक तर्क ,वितर्क और कुतर्क से सतर्क
करते रहते है दिमाग पर जर्क पर जर्क देते रहते  है उनके मन और उनके चैनल की विचार धारा  के अनुकूल उत्तर पाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते है सब मौलिकता को खत्म कर दते है l अब उकता  गए है ये अपने फायदे के लिए ,समाज और देश दोनों को हानि  ही पहुँचाते है l रेडियो के फिर से अच्छे दिन क्यों नही आयेंगे ?एक दूसरे को टेली करने में लगे है विजन तो कब का ही मर चुका है l
प्रथम - निष्पक्षता के बड़े -बड़े दावे करते हैं  और आजकल तो  मीडिया वाले अपनी दुकानदारी चलाने के लिए नई नई भूमिका निभाने की प्रतियोगिता में लगे हुए है
निष्पक्षता  तो  पहले से ही संदिग्ध  लगती है अब तो सेल्फ़ी के दौर में सेल्फ़ी लेकर
चौथे स्तम्भ को कमजोर करने में लगे है l देश की चिंता के बजाय अपनी छवि को चमकाने में लगे  है सेल्फ़ी की खुमारी इस तरह बढ़  गई है  हर कोई इसका दीवाना हो रहा है और सब न्यूज़ चैनल वाले  झिलाने में कसर  नही छोड़ रहे है l   वह दिन दूर नहीं  रेडियो की ईमानदारी की छवि में चार चाँद लगेंगे l
  मैंने यह कहकर विदा ली कि आप  सभी  वृद्धजनों  का आभार , ज्ञान की अमृत वर्षा कर मेरे भी चक्षु खोल दिए अब मैं  भी अपना कीमती समय बचाऊंगा और रेडियो से नाता जोड़कर सरदर्द और रिमोट के लिए घरवाली और बच्चों  से होने वाली किट -किट से मुक्ति पाऊंगा l   और मेरे  उपेक्षित पड़े  रेडियो के भी  फिर अच्छे दिन आयेंगे l            

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