गुड खाये और गुलगुलों से परहेज कि उक्ति जब चरितार्थ होती है
तो सबको आश्चर्य होता है पर राजनीति में तो यह आम बात है मुख में राम बगल में छुरी रहती है फिर भी कोई आकस्मिक घटना अच्छी हो या बुरी ये मानव मात्र कि स्वाभाविक प्रक्रिया है कि सोचने को मजबूर तो कर ही देती है l
हम कुछ मित्र एक चौराहे पर नुक्कड़ कि दुकांन में चाय कि चुस्कियों के साथ गपशप में मशगूल थे कि आज का सूरज उलटी दिशा से निकला क्यों कि आज सदन में हल्ला -गुल्ला के बजाय शांत वातावरण में एक दूसरे कि तारीफ में कसीदे पड़े जा रहे थे जिसने समाचार सुना और देखा वह ख़ुशी से झूम रहा था कि सकारात्म सोच व आत्मप्रेरण मजबूत हो तो कुछ भी सम्भव हो सकता है अगर ऐसा हो जाये तो क्या कहना ,सुंदर सुखद घटना पर तर्क वितर्क का दौर चल रहा था कि एक समाज सेवी जिन्हें हम सब प्यार से काका कहतेहैं वहाँ आ गये ।हमने उन से अनुरोध किया कि इस घटना पर अपनी टार्च से प्रकाश डालिये और हमारी बहस को सही मुकाम दीजिये।
काका ने टार्च जलाकर प्रकाश डालना आरम्भ करते हुए कहा सुनो बच्चों आज इस संसद का अंतिम सत्र का अंतिम दिन था मतलब पूरे पांच साल में जो बुरा घटा उस पर खेद जताने का समय फिर कब मिलता ,जो अच्छा होता है उसे भूलने कि बीमारी हम सब को है जो मुझे खराब या गलत लगता है जरूरी नही सबको लगे, जिस
प्रकार अंतिम समय में हर कोई अच्छा करना चाहता है हर कोई सोचता
है कि 'अंत भला तो सब भला "कि तर्ज पर यह सम्पन्न हुआ.. l इस समय अपने
मतभेद ,मनभेद भुलाकर सब अच्छाई कि खोज लगे हुए थे कुछ भावुक कुछ व्याकुल
होगये। किसी को प्रशंसा से संतोष तो किसी को असंतोष हुआ होगा ,कुछ कायल तो
कुछ घायल हुए होंगेl
काका उतेजित हो कर बोले पुरे पाँच साल के कार्यकाल में सब एक दूसरे को
नीचा दिखने कि घिनौनी हरकत करते रहे और कोई कसर नही छोड़ी आखरी समय में तो
घटिया
हरकतों का सूचकांक चरम शिखर पर था देश में और विदेशो में हमारी
लोकतंत्र कि गरिमा व परम्परा का ह्वास हुआ lवे कहने लगे किसे कोसे सब एक
ही थैली के चट्टे-बट्टे है l
काका कि बैटरी डिस्चार्ज होती नजर नहीं आ रही थी कहने लगे कहने को तो बहुत है पर क्या करे आओ सब मिलकर भगवान से प्रार्थना करते है सबको सदबुद्धि दे कि उस दिन के सीन को चिर स्थायी बनाये रखे यानि सुखद वातावरण हो ,नेता जी गिरगिटों की तरह रंग बदलते है न बदले, क्योकि अब तो गिरगिट भी शर्माने लगे है ,सब नेताओ के मन में जनता के प्रति सदभावना का वास हो ,नये आनेवाले लोग इस दिन का अनुसरण करे मैं ने सोचा कि यह टार्च को बंद किया जाय तरकीब सूझी , मैंने काका से पूछ लिया कि एक चाय और चलेगी वे बोले नही ज्यादा चाय पी ने से एसिडिटी होती है वे बोले अच्छा में चलता हूँ .मुझे महसूस हुआ कि .लोगबाग चायसे भी डरने लगे है
काका कि बैटरी डिस्चार्ज होती नजर नहीं आ रही थी कहने लगे कहने को तो बहुत है पर क्या करे आओ सब मिलकर भगवान से प्रार्थना करते है सबको सदबुद्धि दे कि उस दिन के सीन को चिर स्थायी बनाये रखे यानि सुखद वातावरण हो ,नेता जी गिरगिटों की तरह रंग बदलते है न बदले, क्योकि अब तो गिरगिट भी शर्माने लगे है ,सब नेताओ के मन में जनता के प्रति सदभावना का वास हो ,नये आनेवाले लोग इस दिन का अनुसरण करे मैं ने सोचा कि यह टार्च को बंद किया जाय तरकीब सूझी , मैंने काका से पूछ लिया कि एक चाय और चलेगी वे बोले नही ज्यादा चाय पी ने से एसिडिटी होती है वे बोले अच्छा में चलता हूँ .मुझे महसूस हुआ कि .लोगबाग चायसे भी डरने लगे है
हम सब मित्र आपस में बाय करके अपने -अपने घरों कि और चल
दिए यह सोचते हुए कि काश ऐसा ही माहौल बना रहे जैसा आज था "अंत भला तो सब
भला कि जगह
भला ही भला हो जाय l
संजय जोशी " सजग "
७८ गुलमोहर कालोनी रतलाम [ म.प्र]
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